उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम के प्रावधानों का धड़ल्ले से हो रहे उपयोग को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया है। अदालत ने संबंधित अधिकारियों को इस कानून को लागू करने के संबंध में समान दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया है। जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस मोहम्मद ए.एच. इदरीसी की पीठ ने अलीगढ़ के गोवर्धन नामक व्यक्ति की याचिका पर यह आदेश पारित किया।
गुंडा एक्ट को लेकर अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने अधिकारियों को प्रस्तावित गुंडा के खिलाफ “विशेष आरोपों की सामान्य प्रकृति”, लोगों के बीच उसकी व्यक्तिगत छवि, उसकी सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि की आवश्यक रूप से व्याख्या करने और इसके बाद ही गुंडा नियंत्रण अधिनियम के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि जब तक व्यक्ति में अपराध करने की प्रवृति न हो, उसे आदतन अपराधी नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत गुंडा करार दिए जाने वाले व्यक्ति को जिला प्रशासन द्वारा ऐहतियाती उपाय के तहत जिला बदर कर दिया जाना चाहिए।
“…तो गुंडा करार नहीं दिया जा सकता”
अदालत ने कहा कि वह व्यक्ति स्वयं या गिरोह के सरगना के तौर पर इस कानून की धारा 2(बी) में उल्लिखित अपराध करने का आदी हो या उसमें बार बार अपराध करने की प्रवृत्ति हो। अदालत का कहना था कि एक व्यक्ति पर एक अकेला मामला बनता हो तो उसे आदतन गुंडा नहीं करार दिया जा सकता। इस मामले में अलीगढ़ के अपर जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 15 जून, 2023 को याचिकाकर्ता को उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जिसे याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
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