लखनऊ: ढलती उम्र के साथ ही पार्टी के खिसकते जनाधार को देखते हुए बसपा प्रमुख मायावती को अब अपने युवा भतीजे आकाश आनंद से ही ‘चमत्कार’ होने की बड़ी उम्मीदें हैं। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में दो दशक पुराने ‘2007’ के नतीजे दोहराने के लिए मायावती ने आकाश पर बड़ा दांव लगाते हुए उसे एक बार फिर अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने के साथ ही नेशनल कोआर्डिनेटर के पद का दायित्व सौंप दिया है। आकाश अब दूसरे राज्यों में ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी सक्रिय भूमिका निभाते दिखेंगे। सोशल मीडिया के साथ ही फील्ड में भी आकाश के साथ पार्टी के छोटे-बड़े नेता वंचित समाज को साधते दिखाई देंगे।
दरअसल, चार दशक पहले 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने बहुजन समाज को लेकर डॉ. आंबेडकर के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए जिस बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था वह इनदिनों अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है। कांशीराम ने 15 दिसंबर 2001 को मायावती को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया था।
2007 में पहली बार राज्य में बनाई थी बहुमत की सरकार
वर्ष 2006 में कांशीराम के न रहने बाद वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में जिस बसपा ने 30.43 प्रतिशत वोट और 206 विधायकों के साथ पहली बार राज्य में बहुमत की सरकार बनाई थी उसका इस समय न लोकसभा और न ही राज्यसभा में कोई सदस्य है। विधानसभा में सिर्फ एक सदस्य जबकि विधान परिषद में भी कोई सदस्य नहीं है। पार्टी के तेजी से खिसकते जनाधार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 18वीं लोकसभा के हालिया चुनाव में पार्टी को सिर्फ 9.39 प्रतिशत वोट हासिल हुए।
पार्टी के लगातार खराब होते प्रदर्शन के कारण तमाम हैं लेकिन एक बात साफ है कि खासतौर से वंचित समाज में भी अब ‘बहन जी’ का पहले जैसा जादू नहीं रहा। इसका बड़ा कारण यह माना जाता है कि 68 वर्षीय मायावती अब इंटरनेट मीडिया पर ही ज्यादा सक्रिय दिखाई देती है। न पदाधिकारियों के बीच और न ही फील्ड में उनकी पहले जैसी सक्रियता रहती है जबकि राजनीति के बदलते दौर में दूसरी पार्टियों के छोटे-बड़े नेता लगातार फील्ड में दिखाई देते हैं।
आकाश को सौंपा था यूपी-उत्तराखंड का दायित्व
ऐसे में मायावती ने पिछले वर्ष 10 दिसंबर को अपने 28 वर्षीय भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकारी घोषित कर वचिंत समाज के युवाओं में खासतौर से पैठ बढ़ाकर पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश की थी। तब मायावती ने आकाश को उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड को छोड़ देशभर में ‘नीला परचम’ लहराने का दायित्व सौंपा था। हालांकि, चुनाव के दौरान आकाश ने उत्तर प्रदेश में भी चुनावी रैलियां की। भाषणों में आकाश के बेहद आक्रामक रुख को वंचित समाज के लोग पसंद भी कर रहे थे लेकिन मायावती ने उन्हें अपरिपक्व बताते हुए चुनाव के दरमियान ही सभी पदों से हटा दिया था।
आकाश को अचानक सभी पदों से हटाने के पीछे तब चर्चा यही थी कि बसपा प्रमुख ने इस तरह कार्रवाई कर जहां यह संदेश दिया है कि पार्टी के हित में वह ‘परिवार वालों’ को भी बख्शने वाली नहीं हैं वहीं चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन रहने पर भी आकाश की छवि पर किसी तरह की आंच नहीं आएगी।
2027 के लिए आकाश पर दांव
एनडीए व सपा-कांग्रेस आइएनडीआइए गठबंधन से लोस चुनाव में पार्टी की करारी हार और सांसद बनने के बाद आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के चंद्रशेखर की बढ़ती सक्रियता को देखते हुए मायावती ने मात्र 47 दिनों में ही आकाश को परिपक्व नेता के तौर पर उभरता हुआ मानकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य का भी दायित्व सौंप दिया है। वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में ‘2007’ के नतीजे दोहराने को भतीजे पर बड़ा दांव लगाते हुए बसपा प्रमुख का मानना है कि उनकी सभी उम्मीदों पर आकाश खरा उतरेंगे।
मायावती ने कहा कि देश-प्रदेश में खासतौर से वंचित समाज के बीच होने वाली किसी बड़ी घटना पर पार्टी के जिला व प्रदेश के पदाधिकारी तो जाएंगे ही। घटना की गंभीरता को देखते हुए आकाश आनंद भी मौके पर पहुंचेंगे। पार्टी नेताओं का मानना है कि युवा आकाश जब आंबेडकर-कांशीराम के अनुयायियों और मायावती को जानने-मानने वाले खासतौर से वंचित समाज के लोगों के बीच जाएंगे तब एक बार फिर बुजुर्गों से लेकर युवा भी ‘नीले झंडे’ के नीचे जुटेंगे। ऐसे में आकाश के नेतृत्व में देर-सबेर चमत्कार होने से पार्टी के दिन तो फिर बहुरेंगे ही।
अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ेगी बसपा
भले ही अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने पर एक बार फिर बसपा शून्य पर सिमट गई है लेकिन तीन वर्ष बाद होने वाला विधानसभा चुनाव भी बसपा अकेले ही लड़ेगी। रविवार की बैठक में मायावती ने कहा कि वंचित समाज के गुमराह होने से पार्टी को इस चुनाव में नुकसान हुआ है।
पूर्व में सपा व कांग्रेस से किए गए गठबंधनों का जिक्र करते हुए मायावती ने कहा कि गठबंधनों से बसपा कभी फायदे में नहीं रही है इसलिए हम अकेले ही चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे रहें। गांव-गांव जाकर वंचित समाज के लोगों को समझाएं कि सपा-कांग्रेस नहीं बसपा ही उनकी हितैषी पार्टी है इसलिए किसी तरह से गुमराह होने की आदत छोड़ बसपा को मजबूत बनाएं।
बसपा का उत्तर प्रदेश में प्रदर्शन
चुनावी वर्ष जीती सीटें मिले मत(प्र.में)
2024 00 09.39
2022 01 12.83
2019 10 19.43
2017 19 22.23
2014 00 19.77
2012 80 25.91
2009 20 27.42
2007 206 30.43
2004 19 24.67
1999 14 22.08
1998 04 20.90
1996 06 20.61
1991 01 08.70
1989 02 09.93
नोट- 2022, 2017, 2012 व 2007 विधानसभा चुनाव के नतीजे हैं।
NEWS SOURCE : jagran