नई दिल्ली : नए संसद भवन में रचा गया काला इतिहास

नई दिल्ली : नए संसद भवन में रचा गया काला इतिहास

नई दिल्ली : नये संसद भवन के प्रथम और ऐतिहासिक सत्र में 19 सितम्बर को लोकसभा को संबोधित करते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘आज जब हम एक नई शुरूआत कर रहे हैं तब हमें अतीत की हर कड़वाहट को भुलाकर आगे बढ़ना है। स्पिरिट के साथ जब हम यहां से, हमारे आचरण से, हमारी वाणी से, हमारे संकल्पों से जो भी करेंगे, देश के लिए, राष्ट्र के एक-एक नागरिक के लिए वो प्रेरणा का कारण बनना चाहिए और हम सबको इस दायित्व को निभाने के लिए भरसक प्रयास भी करना चाहिए।’ प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि हमें सारा राष्ट्र देख रहा है इसलिये ‘हम सभी को संसदीय परंपराओं की लक्ष्मण रेखा का अनुसरण करना चाहिए’। लेकिन प्रधानमंत्री की सांसदों से की गयी भविष्य की इन अपेक्षाओं को दो दिन के अन्दर भाजपा के अपने ही सांसद रमेश बिधूड़ी ने तार-तार कर दिया। हैरानी का विषय तो यह है कि जब बिधूड़ी बसपा सदस्य को गरियाने के साथ धमका रहे थे तो सत्ताधारी दल के सदस्य अट्टाहस कर उनके हौसले बढ़ा रहे थे। वैसे भी बिधूड़ी संसद के बाहर ऐसी हरकतों के लिए ही ज्यादा जाने जाते रहे हैं।

21 सितंबर को विशेष सत्र के दौरान लोकसभा में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी मिसाल भारतीय संसदीय इतिहास में शायद ही मिलेगी। सांसद रमेश बिधूड़ी ने चंद्रयान-3 की उपलब्धियों पर चर्चा के दौरान बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के साथ जो व्यवहार किया वह किसी गुंडई से कम नहीं बिधूड़ी के अति अशोभनीय शब्दों को भले ही लोकसभा की कार्यवाही से हटा दिया गया हो मगर भारतवासियों के दिलो-दिमाग से कोई भी कैसे हटा पाएगा?

ऐसी अवांछित घटनाओं के कारण लोकसभा के पहले स्पीकर जीवी मावलंकर, जिन्हें पीठासीन पदाधिकारियों के लिये आदर्श और अनुकरणीय माना जाता है, ने 15 मई 1952 को पहली कार्यवाही से पहले कहा था कि सदन में, ‘बहस के उपयोगी, सहायक और प्रभावी होने के लिए खेल भावना, आपसी सद्भावना और सम्मान का माहौल एक आवश्यक शर्त है।’ लेकिन तब से लेकर अब तक सदन का परिदृश्य ही बदल गया है। जब बिधूड़ी धमकी और गालीगलौच पर उतर रहे थे तो कुछ सदस्य ठहाके लगा रहे थे। चूंकि लोकसभा सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है इसलिये उसे देशवासियों की भावनाओं का प्रतिबिम्ब भी माना जा सकता है। यद्यपि समाज में लाखों की संख्या में बिधूड़ी मौजूद हैं जो कि अपने जहरीले विचारों से समाज का माहौल बिगाड़ने का प्रयास करते रहते हैं। भाजपा को तो इसी तरह का आचरण पसंद है।

अगर न होता तो बिधूड़ी की क्या मजाल थी। वैसे भी भाजपा में बिधूड़ियों की भरमार है। इसके बाद भी अगर भाजपा बिधूड़ी को महज कारण बताओ नोटिस जारी कर कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है तो बिधूड़ी के आचरण को भाजपा का परोक्ष समर्थन ही माना जायेगा। इसी तरह लोकसभा स्पीकर द्वारा बिधूड़ी को चेतावनी देना और उनके शब्द कार्यवाही से हटाना काफी नहीं है। उनकी सदस्यता को कुछ समय के लिये निलंबित करना भी काफी नहीं है, क्योंकि अनुशासनहीनता पर सदस्यों का निलंबन होता रहता है। जबकि यह केवल अनुशासनहीनता तक सीमित नहीं है बल्कि साफ गुंडई है जिसकी सजा अदालत के हाथ में न हो कर केवल मास्टर आॅफ द हाउस, स्पीकर के हाथ में है या फिर सदन के पास है।

संविधान स्पीकर या लोकसभा को अपने सदस्यों को निलंबित करने का ही नहीं बल्कि उनकी सदस्यता समाप्त करने का अधिकार भी देता है। संविधान लागू होने के अगले ही साल सन 1951 में एजी मुद्गल के साथ ऐसा हो चुका है। तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस के इस सदस्य पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप था और उनकी सदस्यता की समाप्ति का नेहरू ने पुरजोर समर्थन किया था। उसके बाद 15 नवंबर 1976 को सुब्रह्मण्यम स्वामी को देश से बाहर जाकर संसद को लेकर गलत कमेंट करने की वजह से राज्यसभा से निकाल दिया गया। 18 नवंबर 1977 को इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री रहते हुए पद के दुरुपयोग और कई अन्य आरोपों के चलते अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तथा संसदीय समिति की जांच के बाद 18 दिसंबर 1978 को इंदिरा के खिलाफ वोटिंग हुई और उनकी सदस्यता छीन ली गई।