नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को साल 2011 की एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
बता दें इस याचिका में एक जटिल कानूनी मुद्दा उठाया गया था, जिसमें पूछा गया था कि बिना शादी के पैदा हुए बच्चे क्या हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार होंगे या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका पर विभिन्न वकीलों की दलीलें सुनीं और फिलहाल अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16(3) के तहत सिर्फ अपने माता-पिता द्वारा अर्जित की गई संपत्ति पर ही होगा या फिर पूरी पैतृक संपत्ति पर भी उसका अधिकार होगा।
कोर्ट ने कहा कि ‘हर समाज में वैधता के नियम बदल रहे हैं। जो पूर्व में अवैध था हो सकता है वह आज वैध हो जाए। अवैधता की अवधारणा सामाजिक सहमति से पैदा होती है, जिसमें कई सामाजिक संगठन अहम भूमिका निभाते हैं।
ऐसे में बदलते हुए समाज में कानून स्थिर नहीं रह सकते।’ हिंदू विवाह अधिनियम के तहत एक शून्य या अमान्य शादी में दोनों पक्षों को पति-पत्नी का दर्जा नहीं दिया जाता है। सिर्फ मान्य शादी में ही पति-पत्नी का दर्जा मिल सकता है।