रुद्रप्रयाग : रुद्रप्रयाग जिले के क्वीली, कुरझव और जौंदला गांव में 300 से अधिक सालों से होली नहीं खेली गई है। बताया जाता है कि होली खेलने पर यहां की कुलदेवी व ईष्टदेव नाराज हो जाते हैं और गांव में अनहोनी घट जाती है। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट में भी कई ऐसे गांव हैं जहां इसी तरह की मान्यता है, वे लोग भी होली नहीं मनाते हैं। Holi will not be celebrated in these villages
होली एक ऐसा त्यौहार है जो सम्पूर्ण भारत में हंसी-ख़ुशी के साथ मनाया जाता है। यह रंगो का त्यौहार एक दूसरे के दिलों को जोड़ने वाला त्यौहार है। परिवार और दोस्तों के साथ रंगों से खेलने की खुशी और त्यौहार के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ हर किसी में उत्साह से भर देता है। Holi will not be celebrated in these villages
लेकिन जहां एक ओर देशभर में इतने हर्षो उल्लास से होली मनाई जाती है तो वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में कई ऐसे गांव भी हैं जहां पर होली नहीं मनाई जायेगी। इन गांवों में कई वर्षों से होली नहीं मनाई गई है और जब किसी ने इस प्रथा को तोड़कर होली मानाने का प्रयास किया तो इसका परिणाम पूरे गांव वालों को भुगतना पड़ा। तो आइए जानते हैं वो ऐसे कौन से गांव हैं जहां यह परंपरा कायम है। Holi will not be celebrated in these villages
रुद्रप्रयाग के 3 गांव जहां सदियों से नहीं खेली गई होली:
उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जिले अगस्त्यमुनि ब्लॉक की तल्ला नागपुर पट्टी के क्वीली, कुरझण और जौंदला गांव में पिछले 300 से अधिक सालों से होली नहीं मनाई गई है। यहां न कोई होल्यार आता है और न ग्रामीण एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। गांव के लोगों ने इस प्रथा को तोड़कर होली खेलने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। पूरे गांव में हैजा जैसी घातक बीमारी फेल गई जिसमें कई लोगों की जान चली गई। ऐसा एक बार नहीं बल्कि समय-समय पर इस परंपरा को तोड़ने का प्रयास किया गया लेकिन गांव वालों को फिर से इसका परिणाम भुगतना पड़ा। जिस कारण इन तीन गांव में होली पूरी तरीके से प्रतिबंधित है।
होली न खेलने के पीछे मान्यता:
स्थानीय लोग बताते हैं कि इन गांवों की बसावट को तीन सदी से अधिक हो गया है। जम्मू-कश्मीर से कुछ पुरोहित परिवार अपने जजमान और काश्तकारों के साथ वर्षों पूर्व यहां आकर बस गए थे। ये लोग अपने साथ अपनी ईष्टदेवी मां त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति भी साथ लेकर आए थे, जिसे गांव में स्थापित किया गया। मां त्रिपुरा सुंदरी को वैष्णों देवी की बहन माना जाता है। इसके अलावा तीन गांवों के क्षेत्रपाल देवता भेल देव को भी यहां पूजते हैं। Holi will not be celebrated in these villages
ग्रामीणों बताते हैं कि उनकी कुलदेवी और ईष्टदेव भेल देव को होली का हुड़दंग और रंग पसंद नहीं है। इसलिए वो सदियों से इस त्यौहार को नहीं मनाते। वर्षों पूर्व जब इन गांव में होली खेली गई तो लोग हैजा जैसी बीमारी से ग्रसित होकर मर गए थे। लोगों ने जब बीमारी से छुटकारे का प्रयास किया तो उन्हें पता चला कि होली खेलने से ग्रामीणों पर क्षेत्रपाल और ईष्ट देवी का दोष लगा है। दो बार इस तरह की घटना के बाद तीसरी बार होली का त्यौहार न मनाने के लिए लोग मजबूर हैं। हालांकि आस-पास के गांवों में होली पूरे धूमधाम से खेली जाती है। Holi will not be celebrated in these villages
कुमाऊँ में भी हैं कुछ ऐसे गांव
कुमाऊँ में भी पिथौरागढ़ जिले के धारचूला, मुनस्यारी और डीडीहाट में भी कई ऐसे गांव हैं जहां इसी तरह की मान्यता है, वे लोग भी होली नहीं मनाते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां पूर्वजों के समय से होली ना मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसे एक मिथक के तौर पर देखा जाता है जो आज भी समाप्त नहीं हो पाई है। ग्रामीणों को ये आशंका रहती है कि होली मनाने से कोई बड़ी अनहोनी हो जाएगी। इस डर से लोग होली न मनाने में ही भलाई समझते है। Holi will not be celebrated in these villages