उत्तराखंड की वन पंचायतों के भीतर बड़े पैमाने पर बाघों की मौजूदगी का खुलासा हुआ है। अब तक सिर्फ रिजर्व फॉरेस्ट में ही बाघों की गणना की जाती रही है और इसी आधार पर बाघों की संख्या घोषित कर दी जाती है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के पंचायती जंगलों में पहली बार किए गए सर्वे में बाघ होने के सबूत मिलने के साथ ही उत्तराखंड बाघों की तादाद के लिहाज से देश में नंबर वन की दौड़ में शामिल होने जा रहा है। अधिकारियों के अनुसार सर्वे से संकेत मिले हैं कि अगली गणना में यह छोटा सा राज्य बाघों का सबसे बड़ा बसेरा साबित हो सकता है।
अब तक यह माना जाता था कि बाघों की मौजूदगी केवल रिजर्व फॉरेस्ट में है। लेकिन हाल का वन पंचायतों का सर्वे उत्साहजनक रहा। वन विभाग ने लैंसडोन की 80, रामनगर की 50 और भूमि संरक्षण प्रभाग रामनगर की 40 वन पंचायतों में सर्वे करवाया। पहली बार 170 वन पंचायतों में कैमरा ट्रैप और पैरों के निशान समेत तमाम तरीकों से बाघों की मौजूदगी का पता लगाया गया। सर्वे में यह तथ्य सामने आया कि यहां 97 प्रतिशत इलाके में बाघों की मौजूदगी है। इस सर्वे रिपोर्ट से वन विभाग के अफसर उत्साहित हैं। इससे साफ हो गया कि बाघ संरक्षण में यहां के लोगों की भूमिका भी अहम है। वन पंचायतों में ज्यादातर आम लोगों का दखल रहता है।
सीसीएफ-वन पंचायत डॉ. पराग मधुकर धकाते ने कहा, ‘वन पंचायतों में पहली बार बाघों की मौजूदगी सामने आई। डब्ल्यूआईआई (वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) के सर्वे में स्पष्ट हुआ कि यहां बड़ी संख्या में बाघ हैं। ये सर्वे उत्तराखंड के लिए बेहद अहम है, क्योंकि वन पंचायतों को भी बाघों की अगली गणना में शामिल किया गया तो उत्तराखंड देश में नंबर वन पर आ सकता है।’
उत्तराखंड तीसरे नंबर पर
कुछ समय पूर्व जारी आंकड़ों में बाघों के मामले में उत्तराखंड देश में तीसरे स्थान पर है। जबकि कर्नाटक मामूली अंतर से दूसरे और मध्यप्रदेश पहले नंबर पर है।
11 हजार से ज्यादा वन पंचायतों में संभावना
प्रदेश में वर्तमान में 11 हजार से ज्यादा वन पंचायतें हैं। जिनमें से कई में बाघों की मौजूदगी हो सकती है। ऐसे में वन विभाग उत्साहित है कि इनमें बाघों की गणना से काफी संख्या में बाघ मिल सकते हैं।
NEWS SOURCE : livehindustan