अल्मोड़ा नगर में कृत्रिम रूप से छोड़े जा रहे बंदरों की बढ़ती संख्या अब केवल एक वन्यजीव समस्या नहीं रही, बल्कि सीधे-सीधे आमजन की सुरक्षा और मानसिक शांति पर हमला बन चुकी है।


आज इसी विषय को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे ने प्रभारी जिलाधिकारी श्री देवेश शासनि से उनके कार्यालय में मुलाकात कर एक गंभीर ज्ञापन सौंपा।

इस अवसर पर रामशिला वार्ड के पार्षद नवीन चंद आर्य (बबलू भाई)भी संजय पाण्डे के साथ उपस्थित रहे।
संजय पाण्डे ने स्पष्ट कहा –
“अल्मोड़ा अब ‘शहर’ नहीं, ‘संघर्ष क्षेत्र’ बनता जा रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने से डर रहे हैं, बुज़ुर्गों का बाहर निकलना दूभर हो गया है और महिलाएं मंदिर जाने से पहले आसमान की ओर ताकती हैं कि कहीं छत पर बंदर न बैठा हो। यह कोई सामान्य बात नहीं – यह सुनियोजित जैविक अतिक्रमण है।”उन्होंने प्रशासन को कटघरे में खड़ा करते हुए पूछा –
1-किसके आदेश पर बंदरों को ट्रकों में भरकर पहाड़ों में छोड़ा जा रहा है?
2-क्या यह जानबूझकर किया गया ‘संक्रमण’ नहीं है?
3-यदि किसी बच्चे या बुज़ुर्ग को जान से हाथ धोना पड़ा, तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
संजय पाण्डे ने पांच प्रमुख मांगें भी रखीं:
1- इस कृत्रिम संकट की जांच हेतु विशेष समिति गठित की जाए।
2- नगर निगम, वन विभाग, पुलिस और प्रशासन के संयुक्त सहयोग से सघन पकड़ अभियान चलाया जाए।
3- सीमावर्ती क्षेत्रों पर स्थायी निगरानी चौकियां स्थापित हों।
4- वन विभाग की प्रगति रिपोर्ट अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी कार्यालय में प्रस्तुत हो।
5- पूर्व में दर्ज शिकायतों को पुनः खोला जाए और लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही हो। उन्होंने दो टूक चेतावनी दी कि यदि सात कार्यदिवसों में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह विषय राज्यपाल, मुख्यमंत्री, माननीय उच्च न्यायालय, मानवाधिकार आयोग और मीडिया मंचों तक ले जाया जाएगा। साथ ही यह भी कहा “यह कोई सामान्य शिकायत नहीं, अल्मोड़ा की आत्मा की पुकार है। अब चुप रहना अपराध है।”*पार्षद नवीन चंद्र आर्य (बबलू भाई) ने भी जताई गहरी चिंता*रामशिला वार्ड के पार्षद नवीन चंद्र आर्य ने कहा –“यह संकट किसी एक वार्ड या मोहल्ले की बात नहीं है। यह पूरे नगर क्षेत्र की आपात स्थिति है। प्रशासन को इस पर तुरंत संज्ञान लेकर सघन कार्यवाही करनी चाहिए, वरना हालात हाथ से निकलते देर नहीं लगेगी।”