गन्तुं शक्नोमि (मैं बाहर जा सकता हूं)। आगन्तुं शक्नोमि (मैं अंदर आ सकता हूं)। संस्कृत के शब्दों का यह उच्चारण एक सरकारी स्कूल में सुनाई देता है। यह संस्कृत का विद्यालय नहीं है, लेकिन बच्चे हर बात संस्कृत में कहते हैं। आपस में वार्ता करते हैं, शिक्षकों से बात करते हैं। शुरू में झिझक थी। अब और अधिक सीखने की ललक है।
200 बच्चे जब सुबह स्कूल में दाखिल होते हैं तो एक-दूसरे से कहते हैं अहम् नमामि, कुशलम् वर्तते। अर्थात ‘मैं नमस्ते करता हूं या करती हूं। आप कुशल हैं।’
उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों के प्रति जो धारणा है, उसे कुमाऊं मंडल के ऊधम सिंह नगर में स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय रवींद्र नगर ने बदल दिया है और यह संभव हुआ शिक्षिका अनु सिंघल के दृढ़ संकल्प से। अंग्रेजी की ओर भागते बचपन व सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार नहीं होने की बातों ने अनु को संस्कृत रूपी प्रकाश दिखाया।अनु
सिंघल का हिंदी और संस्कृत प्रमुख विषय
रुद्रपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली अनु सिंघल का हिंदी और संस्कृत प्रमुख विषय रहा। बीएड और विशिष्ट बीटीसी के बाद 2014 में उन्हें सरकारी सेवा का अवसर मिला। पहली नियुक्ति पिथौरागढ़ के दूरस्थ विद्यालय में हुई।संस्कृत के प्रति अपने पिता स्व. बिधि चंद सिंघल का लगाव और नियमित भागवत गीता अध्ययन ने अनु का विचार बदला। यही उनकी प्रेरणा बना। संस्कृत सीखने-समझने की रुचि राह प्रशस्त करती गई। यह उनकी मेहनत का ही परिणाम है कि अब 105 छात्रों व 95 छात्राओं वाला यह सरकारी स्कूल दूसरे विद्यालयों के लिए आज प्रेरणा बन चुका है। इन विद्यार्थियों को 30 से अधिक श्लोक कंठस्थ याद हैं।
शुरुआत में विकसित किया भाव और लगाव
आवास विकास रुद्रपुर निवासी शिक्षिका अनु सिंघल की 26 अगस्त 2020 को इस विद्यालय में तैनाती हुई। तब बच्चे संस्कृत समझना तो दूर बोल तक नहीं पाते थे। शुरुआत में बच्चों को सिखाया गया कि विद्यालय आने पर सहपाठियों और गुरुजनों को सुबह का नमस्कार और कुशलक्षेम जानने, कक्षा से अंदर-बाहर जाने को संस्कृत में कैसे बोला जाए। उसके बाद कक्षाओं में (कक्षा एक से पांच तक) पढ़ाई के दौरान इस भाषा के प्रति भाव और लगाव विकसित किया गया। बच्चों के सामान्य जीवन में संस्कृत भाषा के व्यावहारिक शब्दों को बातचीत में शामिल किया। बच्चों की रुचि विकसित करने के लिए उनमें कविता, श्लोक, दैनिक स्कूली चर्चा में प्रार्थना, प्रतिज्ञा आदि का नियमित अभ्यास करवाया। जब यह रूटीन का हिस्सा बना तो परिणाम धीरे-धीरे बेहतर होते गए। उनके इस संकल्प में विद्यालय के प्रधानाध्यापक केके शर्मा, कीर्ति निधि शर्मा, राजकुमारी, मुन्नी आगरी ने सहयोग दिया और सरकारी स्कूल संस्कृतमय हो गया।
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