493 वर्षों बाद राजतिलक की रस्म का साक्षी बनेगा फतह प्रकाश महल, खून से तिलक के साथ विश्वराज सिंह मेवाड़ का ऐतिहासिक राजतिलक

उदयपुर: वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के वंशज उदयपुर के पूर्व महाराणा और पूर्व सांसद स्व. महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके पुत्र नाथद्वारा से विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ का ऐतिहासिक राजतिलक समारोह चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित फतह प्रकाश पैलेस के प्रांगण में होगा। इस रस्म में परंपरा अनुसार तलवार से अंगूठे को चीरा लगाकर खून से तिलक किया जाएगा। यह कार्यक्रम अपने आप में ऐतिहासिक होगा, क्योंकि पूर्व महाराणा उदयसिंह के मेवाड़ की राजधानी उदयपुर को बनाने के बाद चित्तौड़गढ़ में किसी का राजतिलक नहीं हुआ था। रियासतकाल में चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की राजधानी रहा है। फतह प्रकाश महल 493 वर्षों बाद राजतिलक की रस्म का साक्षी बनने जा रहा है।

इसमें देशभर के पूर्व राजपरिवारों के सदस्य, रिश्तेदार, मेवाड़ की पूर्व राजव्यवस्था के ठिकानेदार, राव-उमराव, गणमान्य नागरिक और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रमुख शामिल होंगे। कार्यक्रम की तैयारियां चित्तौड़गढ़ और उदयपुर में कई दिनों से चल रही हैं। गौरतलब है कि विश्वराज सिंह मेवाड़ की पत्नी महिमा कुमारी मेवाड़ राजसमंद लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।

यह होगी परम्परा

कार्यक्रम की व्यवस्थाओं को देख रहे मेवाड़ जन संस्थान के संयोजक प्रताप सिंह झाला ‘तलावदा’ ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत सोमवार 25 नवम्बर की सुबह फतह प्रकाश महल में हवन और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होगी। इसके बाद सलूंबर रावत देवव्रत सिंह राजपरंपरा निभाते हुए तलवार से अपने अंगूठे को चीरा लगाकार रक्त से विश्वराज सिंह के मस्तक पर तिलक करेंगे। यह परंपरा मेवाड़ के इतिहास में महाराणा प्रताप के समय से चली आ रही है, जब प्रताप का राज्याभिषेक भी इसी रीति से किया गया था। इस दस्तूर के साथ ही विश्वराज सिंह मेवाड़ परम्परानुसार भगवान एकलिंगनाथजी के 77वें दीवान और मेवाड़ के महाराणा के रूप में घोषित होंगे। उल्लेखनीय है कि भगवान एकलिंगनाथजी को मेवाड़ का वास्तविक राजा माना जाता है और उनके दीवान के रूप में महाराणा प्रजापालन का कर्तव्य निर्वहन करते हैं।

मंदिरों से आएगी ‘आश्का’

राजतिलक के दौरान ‘आश्का’ (भगवान को चढ़ाए गए प्रसादी पुष्प) की परम्परा भी निभाई जाएगी। एकलिंगजी मंदिर, कांकरोली स्थित द्वारिकाधीश मंदिर और चारभुजा मंदिर से आश्का और धूप की भभूत लाई जाएगी। इन सामग्रियों को विश्वराज सिंह को आशीर्वाद स्वरूप प्रदान किया जाएगा।

खून से तिलक की परंपरा के पीछे इतिहास

मेवाड़ राज परिवार के शिवरती घराने के इतिहासविद डॉ. अजात शत्रु सिंह शिवरती बताते हैं, मेवाड़ के पूर्वज चूंडाजी से चुंडावत शाखा चली है। चूंडा मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा के सबसे बड़े बेटे थे। इतिहास में उन्हें अपने वचन को निभाने के लिए राजगद्दी के अपने अधिकारों का त्याग करने के लिए जाना जाता है। महाराणा लाखा की मारवाड़ के राजा राव की राजकुमारी हंसाबाई से भी शादी हुई थी। हंसाबाई की शादी इस शर्त पर हुई थी कि इनके कोख से जो बेटा होगा, वह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा। चूंडाजी ने अपने छोटे भाई के लिए मेवाड़ की राजगद्दी को छोड़ दिया था। उस दिन से उन्हें ये अधिकार मिला था कि जब भी मेवाड़ राजपरिवार में राजतिलक और गद्दी पर बिठाने की परम्परा होगी। उसे सलूंबर के चुंडावत ही निभाएंगे। राजतिलक की परंपरा के बाद उमराव, बत्तीसा, अन्य सरदार और सभी समाजों के प्रमुख लोग नजराना पेश करेंगे।

उदयपुर सिटी पैलेस में जाएंगे दर्शन करने

राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह जनता से मिलकर आशीर्वाद लेंगे और उदयपुर रवाना होंगे। वहां वे सिटी पैलेस स्थित प्रयागगिरी महाराज की धूणी और कुलदेवता के दर्शन करेंगे। इसके बाद एकलिंगजी मंदिर में ‘रंग दस्तूर’ की रस्म होगी, जिसमें चांदी की छड़ी उनके कंधे पर धारण कराई जाएगी। इसे एकलिंगजी के दीवान के रूप में उनके कर्तव्यों का प्रतीक माना जाएगा।  

आयोजन स्थल पर तैयारियां

चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतह प्रकाश पैलेस के प्रांगण में लगभग 10 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है। सुरक्षा के लिए चित्तौड़गढ़ पुलिस ने कड़े इंतजाम किए हैं। आयोजन स्थल पर यातायात नियंत्रण और भीड़ प्रबंधन की जिम्मेदारी पुलिस अधिकारियों ने संभाल रखी है। दोपहर में चित्तौड़गढ़ पुलिस उप अधीक्षक विनय चौधरी, कोतवाली थाना प्रभारी संजय स्वामी मय जाप्ते के दुर्ग पर पहुंचे। यहां तैयारियों का जायजा लिया। विशेष तौर पर यातयात की व्यवस्थाओं को देखा, जिससे कि जाम की स्थिति नहीं हो।

मेवाड़ की राजधानी का पुन: स्थानांतरण ?

इतिहास में रियासतकाल के दौरान चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की प्रमुख राजधानी रहा है। परिस्थितिवश महाराणा उदयसिंह ने राजधानी को उदयपुर में बनाया था। ब्रिटिश शासन से देश की स्वतंत्रता और रियासतों के विलीनीकरण के साथ ही सम्पूर्ण मेवाड़ भी भारत गणराज्य का हिस्सा बना। इसके बाद भी दिवंगत पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ का दस्तूर उदयपुर के ही सिटी पैलेस के माणक चौक में हुआ था। अब यह पहला अवसर है जब चित्तौड़गढ़ में राजपरिवार उत्तराधिकार का दस्तूर कार्यक्रम कर रहा है। फतह प्रकाश महल में 493 साल बाद यह परम्परा होने जा रही है। ऐसे में यह चर्चा भी चल पड़ी है कि क्या 25 नवम्बर 2024 के बाद इतिहास के पन्नों में मेवाड़ की राजधानी का पुन: चित्तौड़गढ़ में स्थानांतरण का जिक्र जुड़ेगा? इस संदर्भ में इतिहासविद डॉ. अजात शत्रु सिंह शिवरती का कहना है कि मेवाड़ की सांस्कृतिक, पारम्परिक और भावनात्मक विरासत के दृष्टिकोण से इस बात को कहा सकता है। मेवाड़ के पूर्व राजपरिवारों और बरसों से मेवाड़ में बसे परिवारों की भावनाओं की बात करेंगे तो राजधानी के चित्तौड़गढ़ स्थानांतरण की बात पर सकारात्मक प्रतिक्रिया ही प्राप्त होगी। 

NEWS SOURCE Credit : punjabkesari