राज्यसभा के मनोनीत सांसद और शिक्षाविद सतनाम संधू ने गुरुवार को बीजेपी का दामन थाम लिया है। इसके साथ ही राज्यसभा में बीजेपी सांसदों की संख्या87 हो गई है। उन्होंने गुरुवार को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में पार्टी की सदस्यता ली। बता दें कि 30 जनवरी को उन्हें राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति ने मनोनीत किया था। नियम के मुताबिक 6 महीने के भीतर वह किसी भी पार्टी में शामिल हो सकते थे। यह 6 महीने की अवधि 30 जुलाई को पूरी हो रही थी।
इसी महीने घट गई थी बीजेपी की संख्या
राज्यसभा में बीजेपी की संख्या इसी महीने घट गई थी। दरअसल राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत चार सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया था। इसके साथ ही बीजेपी की संख्या राज्यसभा में 86 हो गई थी। हालांकि संधू के शामिल होने के बाद एक अंक का इजाफा हुआ है। हालांकि अब भी बीजेपी के सदस्यों की संख्या कम है और यह चिंता का विषय है। वर्तमान में उच्च सदन में एनडीए के पास 101 की ताकत है। बीजेपी के पास अब भी बहुमत नहीं है और बिल पास कराने के लिए बाहरी समर्थन की जरूरत होगी।
राज्यसभा में बहुमत के लिए 113 सदस्यों की जरूरत है। वर्तमान में राज्यसभा में सदस्यों की कुल संख्या 225 है। पहले की बात करें तो राज्यसभा में जब भी समर्थन की जरूरत होती थी तब बीजेडी, वाईएसआरसीपी आगे आ जाती थीं। हालांकि इस बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा नहीं लगता कि ये पार्टियां एनडीए का समर्थन करेंगी। ओडिशा में बीजेपी ने लोकसभा और विधानसभा दोनों का चुनाव बीजेडी के खिलाफ लड़ा और जीत हासिल की। वहीं आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी के खिलाफ एनडीए के सहयोगी चंद्रबाबू नायडू ने जीत दर्ज की। ऐसे में दोनों ही पार्टियों को एनडीए की वजह से ही सत्ता से बेदखल होना पड़ा। बीजेडी ने विपक्षी दल की भूमिका निभाने का ऐलान कर दिया है। इंडिया गठबंधन की बात करें तो उसके पास राज्यसभा में कुल 87 सीटें हैं। कांग्रेस की अकेली 26 सीटें हैं। टीएमसी की 13, आम आदमी पार्टी और डीएमके की 10-10 सीटें हैं।
कौन हैं सतनाम संधू
सतनाम संधू राज्यसभा सदस्य बनने से पहले चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुलपति थे। उनकी पहचान शिक्षाविद के तौर पर है। वहीं वह किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने चंडीगढ़ ग्रुप ऑफ कॉलेज की नींव रखी थी। इसके बाद मिशन स्तर पर उन्होंने इस संस्थान के लिए काम किया। सतनाम संधू के भाई फरमान संधू भारती किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष हैं। यह संगठन भी एसकेएम का ही हिस्सा है। किसान संगठने के आंदोलन की वजह से ही मोदी सरकार को 2021 में तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े थे।
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