थानों-चौकियों की बागडोर छुटभैय्या नेताओं के हाथ में
उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश तक हालिया घटनाएं एक खतरनाक पैटर्न दिखा रही हैं। छिंदवाड़ा का वायरल वीडियो हो या आगरा का जमीन विवाद, दोनों ही मामलों में “छुटभैय्या नेता” कानून से ऊपर नजर आते हैं। जनपद सदस्य की पत्नी के नाम पर पति का सड़क पर चप्पलों से पीटा जाना या फिर आगरा में जमीन कब्जाने में पुलिस और खादी का गठजोड़ – इन सबमें एक समान धागा है: छुटभैय्या नेताओं की मनमानी। ¹ ²

कैसे होती है छुटभैय्या नेताओं की दखल?
- परिवार का दुरुपयोग – कई बार जनप्रतिनिधि पत्नी या परिवार के किसी अन्य सदस्य के नाम पर चुनाव जीतते हैं और असली निर्णय असहाय पति या अन्य छुटभैय्या नेता लेते हैं।
- स्थानीय प्रशासन पर दबाव – ये नेता थाना-चौकी से लेकर तहसील तक अपने चहेते अफसरों को बैठाते हैं और विपक्षी को दबाने के लिए पुलिस को हथियार बनाते हैं।
- भ्रष्टाचार का गठजोड़ – आगरा के मामले में जमीन कब्जाने के लिए पुलिस और नेता मिलकर काम कर रहे हैं, जिससे आम आदमी पूरी तरह असहाय महसूस करता है। ²
छुटभैय्या नेता अब थाने-चौकी कैसे चलाएंगे?
- निर्देश जारी करना – ये नेता थानेदारों को फोन कर अपने चहेतों को बचाने या विरोधियों को फंसाने के आदेश देते हैं।
- स्थानांतरण की धमकी – अगर पुलिसकर्मी आदेश मानने से इनकार करता है, तो उसकी पोस्टिंग दुर्गम इलाकों में कराने की धमकी दी जाती है।
- पुलिस की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप – जांच की दिशा बदलना, FIR में धाराएं कम-ज्यादा करना, इन सब पर इनका नियंत्रण हो जाता है।
समाधान की दिशा
- पुलिसकर्मियों के लिए कड़े नियम – बिना उच्चाधिकारियों की अनुमति के किसी नेता के फोन कॉल पर कार्रवाई न करना।
- जनप्रतिनिधियों के अधिकारों की स्पष्ट परिभाषा – ताकि वे प्रशासनिक कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप न कर सकें।
- सामाजिक जागरूकता – लोगों को शिक्षित करना ताकि वे छुटभैय्या नेताओं की मनमानी के खिलाफ आवाज उठा सकें।
निष्कर्ष
छुटभैय्या नेताओं की बढ़ती दखल न केवल कानून व्यवस्था को कमजोर कर रही है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों पर भी प्रहार कर रही है। अगर समय रहते कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो हालात और बिगड़ सकते हैं।

