आईआईटी रुड़की के शोधकर्ता ने नए अतिभारी तत्व आइसोटोप एसजी-257 की खोज में योगदान दिया

परमाणु स्थिरता एवं आवर्त सारणी की सीमाओं की अधिक गहन समझ की ओर एक कदम

आईआईटी रुड़की, उत्तराखंड, भारत – 27/09/2025: एक उल्लेखनीय वैश्विक वैज्ञानिक सफलता में, शोधकर्ताओं ने एक नए अतिभारी समस्थानिक, सीबोर्गियम-257 (Sg-257) की खोज की है, जिसने परमाणु भौतिकी एवं ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ की सीमाओं को और आगे बढ़ाया है। यह अग्रणी प्रयोग जर्मनी के डार्मस्टाट स्थित जीएसआई हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर फॉर हैवी आयन रिसर्च में किया गया था, और इसमें आईआईटी रुड़की के भौतिकी विभाग के संकाय सदस्य, प्रो. एम. मैती का महत्वपूर्ण योगदान था।
यह कार्य प्रतिष्ठित जर्नल फिजिकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित हुआ है एवं परमाणु विज्ञान में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

शक्तिशाली त्वरक एवं अत्याधुनिक संसूचन तकनीकों का उपयोग करते हुए, टीम ने Sg-257, एक अतिभारी तत्व, जो प्रकृति में नहीं पाया जाता, का सफलतापूर्वक संश्लेषण किया। यह खोज इस मूलभूत प्रश्न का उत्तर देने में सहायता करती है कि परमाणु स्थिरता की सीमाओं पर कैसे व्यवहार करते हैं, और “स्थिरता के द्वीप” की अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक खोज में प्रत्यक्ष योगदान देती है, जो परमाणु परिदृश्य में एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ अतिभारी तत्वों का जीवनकाल लंबा और उपयोगी हो सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय शोध दल के सदस्य, आईआईटी रुड़की के प्रोफ़ेसर एम. मैती ने कहा, “यह खोज परमाणु भौतिकी में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि कुछ तत्व लंबे समय तक क्यों जीवित रहते हैं और चरम स्थितियों में परमाणु बल कैसे व्यवहार करते हैं।”

Sg-257 जैसे अतिभारी तत्वों की अर्धायु अत्यंत कम होती है, जो अक्सर क्षय होने से पहले केवल मिलीसेकंड तक ही रहती है। फिर भी, प्रत्येक खोज वैज्ञानिकों को परमाणु संरचना एवं नाभिकीय बलों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती है, और यह एक दिन अधिक स्थिर भारी तत्वों के निर्माण की संभावना को बढ़ावा देती है। हालाँकि वर्तमान में ऐसे अल्पकालिक नाभिकों का व्यावहारिक उपयोग लगभग असंभव है, लेकिन प्राप्त ज्ञान अंततः उन्नत पदार्थों, ऊर्जा अनुसंधान, या यहाँ तक कि नवीन चिकित्सा तकनीकों में अनुप्रयोगों को सूचित कर सकता है।

“यह ऐतिहासिक खोज अत्याधुनिक परमाणु अनुसंधान में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाती है। आईआईटी रुड़की को ऐसे वैश्विक वैज्ञानिक उपलब्धि हिस्सा बनने पर गर्व है। यह मौलिक विज्ञान में उत्कृष्टता प्राप्त करने के हमारे दृष्टिकोण को प्रतिध्वनित करता है जिससे समाज को लाभ हो और अगली पीढ़ी को प्रेरणा मिले,” आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा।

यह शोध वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया था, जिसमें आईआईटी रुड़की के डॉ. एम. मैती, जर्मनी के जीएसआई हेल्महोल्ट्ज़ सेंटर; जोहान्स गुटेनबर्ग विश्वविद्यालय (जेजीयू मेंज़); जापान परमाणु ऊर्जा एजेंसी; फ़िनलैंड के जैवस्किला विश्वविद्यालय; एवं अन्य सहयोगी संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल थे। ये निष्कर्ष जर्मनी के जीएसआई हेल्महोल्ट्ज़ द्वारा आयोजित FAIR चरण-0 सहयोग के एक भाग के रूप में फ़िज़िकल रिव्यू लेटर्स (जून 2025) में प्रकाशित हुए थे।

यह खोज इस बात का उदाहरण है कि मौलिक विज्ञान किस प्रकार तकनीकी प्रगति एवं वैश्विक ज्ञान में योगदान देता है। यह आईआईटी रुड़की की उत्कृष्टता के प्रति उस सतत प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है जो सैद्धांतिक समझ को आगे बढ़ाती है और प्रौद्योगिकी, उद्योग और समाज के भविष्य को आकार देने की क्षमता रखती है।