आईआईटी रुड़की ने ऐतिहासिक मोदी लिपि को देवनागरी में लिप्यंतरित करने के लिए दुनिया का पहला एआई मॉडल विकसित किया है…

  एआई-संचालित विरासत संरक्षण में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि, डिजिटल इंडिया, भारतजीपीटी एवं वैश्विक सांस्कृतिक डिजिटलीकरण पहलों का समर्थन

आईआईटी रुड़की, उत्तराखंड, भारत – 18 जुलाई, 2025: भारत की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता की परिवर्तनकारी शक्ति से जोड़ने वाली एक ऐतिहासिक पहल के अंतर्गत, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने ऐतिहासिक मोदी लिपि को देवनागरी में लिप्यंतरित करने के लिए दुनिया का पहला एआई फ्रेमवर्क सह-विकसित किया है। विज़न-लैंग्वेज मॉडल (वीएलएम) आर्किटेक्चर का लाभ उठाते हुए, MoScNet (एमओएससीनेट) मॉडल मध्यकालीन पांडुलिपियों के संरक्षण एवं डिजिटल इंडिया तथा भाषाणी जैसी पहलों के अंतर्गत बड़े स्तर पर डिजिटलीकरण का समर्थन करने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण प्रदान करता है।

ऐतिहासिक लिपियों से आधुनिक दृष्टि नामक यह परियोजना, MoDeTrans (एमओडिट्रांस) नामक अपनी तरह का पहला डेटासेट प्रस्तुत करती है, जिसमें तीन ऐतिहासिक युगों: शिवकालीन, पेशवेकालीन एवं अंगलाकालीन, की वास्तविक मोदी लिपि पांडुलिपियों की 2,000 से ज़्यादा छवियों के साथ-साथ विशेषज्ञों द्वारा सत्यापित देवनागरी लिप्यंतरण भी शामिल हैं। आईआईटी रुड़की के प्रो. स्पर्श मित्तल के नेतृत्व में एआई मॉडल MoScNet, (एमओएससीनेट), मौजूदा ओसीआर मॉडलों से काफ़ी बेहतर प्रदर्शन करता है और कम संसाधन वाले वातावरण में मौजूद रहने के लिए एक आदर्श स्केलेबल, हल्का समाधान प्रदान करता है।

शोध दल में सीओईपी टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (पूर्व में कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे) से अध्ययनरत छात्र हर्षल एवं तन्वी, तथा विश्वकर्मा इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, पुणे के पूर्व छात्र ओंकार का भी योगदान था। उनके सहयोगात्मक प्रयासों ने लिप्यंतरण ढांचे को विकसित और परिष्कृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने कहा, “यह कार्य दर्शाता है कि कैसे हम एआई की शक्ति का उपयोग न केवल स्वचालन के लिए, बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने, शैक्षणिक अनुसंधान को सशक्त बनाने एवं राष्ट्र निर्माण को गति देने के लिए भी कर सकते हैं। यह विकसित भारत की सच्ची भावना को दर्शाता है, जो भारत के कालातीत ज्ञान को संरक्षित करता है तथा इसे प्रौद्योगिकी के माध्यम से दुनिया के लिए सुलभ बनाता है।”

भूमि अभिलेखों, आयुर्वेद पांडुलिपियों एवं मध्यकालीन विज्ञान ग्रंथों सहित भारत भर में फैले 4 करोड़ से ज़्यादा मोड़ी लिपि दस्तावेज़ों के साथ, यह पहल अकादमिक एवं अभिलेखीय अनुसंधान में एक बड़े अंतर को पाटती है। मोड़ी लिपि विशेषज्ञों की सीमित संख्या और इन अभिलेखों की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए, यह लिप्यंतरण तकनीक विरासत संरक्षण में अभूतपूर्व दक्षता और सुगमता लाती है।

मुख्य अन्वेषक, प्रो. स्पर्श मित्तल ने आगे कहा, “हमारा लक्ष्य ओपन-सोर्स, स्केलेबल एवं नैतिक रूप से प्रशिक्षित एआई टूल्स का उपयोग करके भारत के प्राचीन ज्ञान तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाना है। हमने एक लिप्यंतरण इंजन बनाया है एवं भारतीय लिपियों और बहुभाषी शिक्षण में भविष्य के एआई अनुसंधान की नींव रखी है।

इस परियोजना का उद्देश्य एआई-सहायता प्राप्त डिजिटलीकरण के माध्यम से भारत के मध्यकालीन ज्ञान को संरक्षित करना है, साथ ही इतिहासकारों, शोधकर्ताओं एवं सरकारी अभिलेखागारों के लिए स्केलेबल, ओपन-सोर्स टूल विकसित करना है। भारतजीपीटी एवं भाषाणी जैसे राष्ट्रीय प्लेटफार्मों के साथ भविष्य के एकीकरण को सक्षम करके, यह मॉडल बहुभाषी एआई क्षमताओं का समर्थन करता है और भारत की सांस्कृतिक संपत्तियों तक पहुँच को बढ़ाता है। यह डिजिटल इंडिया, आज़ादी का अमृत महोत्सव एवं राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन (एनएलटीएम) सहित प्रमुख राष्ट्रीय मिशनों में योगदान देता है। यह संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 11.4 के अनुरूप भी है: “विश्व की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत की रक्षा व सुरक्षा के प्रयासों को मज़बूत करना।” इसके अलावा, इस एआई ढाँचे में वैश्विक स्तर पर अन्य लुप्तप्राय या प्राचीन लिपियों के लिए अनुकूलित होने की क्षमता है, जो विभिन्न संस्कृतियों में ऐतिहासिक डिजिटलीकरण के लिए एक अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत करता है।

यह परियोजना आईआईटी रुड़की की नवीन, समावेशी एवं प्रभावशाली अनुसंधान के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण है, जो ज़िम्मेदार तकनीक के माध्यम से अतीत को भविष्य से जोड़ती है। टीम ने हगिंग फेस पर MoDeTrans (एमओडिट्रांस) डेटासेट एवं MoScNet (एमओएससीनेट) मॉडल को ओपन-सोर्स किया है, जिससे वैश्विक पहुंच सुनिश्चित हुई है और समुदाय-संचालित नवाचार को प्रोत्साहन मिला है।