मशहूर उद्योगपति रतन टाटा

उनके बिज़नेस और सामाजिक कार्यों के ज़रिए टाटा समूह हर भारतीयों के घरों तक पहुँचा और लोगों के मन में जगह बना ली. इसीलिए उनके निधन पर हर किसी ने शोक व्यक्त किया.
रतन टाटा का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाता है लेकिन फिर भी वे विवादों से पूरी तरह दूर नहीं रह सके. अपने अच्छे कामों के लिए पहचाने जाने वाले रतन टाटा को चार मामलों में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
इनमें सिंगूर नैनो प्लांट पर किसानों का विरोध, नीरा राडिया की फोन टैपिंग, तनिष्क विज्ञापन और साइरस मिस्त्री की नियुक्ति के मामले शामिल हैं.
आख़िर ये मामले क्या हैं? हमेशा अच्छे काम के लिए जाने जाने वाले रतन टाटा विवादों में क्यों आ गए थे? और उस समय रतन टाटा ने क्या भूमिका निभाई थी?
किसानों का विरोध सिंगूर नैनो प्रोजेक्ट पर.
सबसे सस्ती कार के सपने को साकार करने के लिए टाटा ने नैनो प्रोजेक्ट की घोषणा की थी.
2006 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने टाटा के इस प्रोजेक्ट के लिए किसानों से ज़मीन अधिग्रहण किया था. लेकिन इस ज़मीन अधिग्रहण का पश्चिम बंगाल में भारी विरोध हुआ.
पश्चिम बंगाल में तत्कालीन विपक्षी नेता ममता बनर्जी ने किसानों के विरोध का नेतृत्व किया और आमरण अनशन किया. बाद में इस आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया. आख़िरकार इस विवाद के बाद टाटा ने नैनो प्रोजेक्ट को गुजरात शिफ़्ट कर दिया लेकिन ज़मीन कंपनी ने अपने पास ही रखी.
2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सीपीएम को करारी हार का सामना करना पड़ा और ममता बनर्जी मुख्यमंत्री बनीं. कैबिनेट के पहले फै़सले के तौर पर उन्होंने टाटा से ज़मीन लेकर किसानों को सौंप दिया.

2010 में रतन टाटा एक बड़े विवाद में फँस गए थे.
सीबीआई ने लॉबीइस्ट नीरा राडिया की 100 से ज़्यादा कॉल टैप कीं. इसमें प्रमुख नेताओं, उद्योगपतियों और पत्रकारों के साथ राडिया की बातचीत शामिल थी.
इसमें रतन टाटा भी शामिल थे. रतन टाटा की राडिया से बातचीत लीक होने के बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया. राडिया उद्योगपति मुकेश अंबानी और रतन टाटा के लिए काम करती थीं.
जांच एजेंसी मोबाइल टेलीफोन लाइसेंस की बिक्री में कथित गड़बड़ी के आरोपों की जांच कर रही थी. उसी के तहत राडिया का फोन आधिकारिक तौर पर जांच एजेंसियों ने टैप किया था.
इसके बाद टाटा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए कहा कि यह एक निजी बातचीत थी और इसे सार्वजनिक करना उनकी निजता का उल्लंघन है.
इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जांच के आदेश भी दिए थे.
फोन टैपिंग को लेकर मनमोहन सिंह ने कहा था, ”मुझे इंडस्ट्री में कुछ लोगों के फोन टैपिंग से होने वाली चिंता के बारे में पता है. लेकिन हम जिस दुनिया में रहते हैं, वहाँ सरकारी एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा, टैक्स चोरी और अवैध वित्तीय लेनदेन के मामलों में फोन टैपिंग जैसी शक्ति की ज़रूरत होती है.”
मनमोहन सिंह ने उस समय यह भी कहा था, “जांच एजेंसियों को इन शक्तियों का अधिक सावधानी से उपयोग करना चाहिए. स्पष्ट नियमों और प्रक्रियाओं की ज़रूरत है ताकि इन शक्तियों का दुरुपयोग न हो.”
विज्ञापन को जल्दबाजी में वापस लेने के लिए रतन टाटा की आलोचना..
अक्टूबर 2020 में टाटा ग्रुप द्वारा अपने जूलरी ब्रैंड ‘तनिष्क’ के एक विज्ञापन को जल्दबाजी में वापस लेने के लिए भी रतन टाटा की काफ़ी आलोचना की गई थी.
‘एकत्वम’ (एकता) नामक आभूषण के विज्ञापन में एक मुस्लिम परिवार में हिंदू बहू की गोद भराई की रस्म को दिखाया गया था.
इसमें एक सहिष्णु भारतीय समाज को दिखाया गया था जो सभी धर्मों और राष्ट्रीय एकता का सम्मान करता था.
हालाँकि, विज्ञापन को आलोचना का सामना करना पड़ा और उनकी तरफ़ से तनिष्क के बहिष्कार करने की भी अपील की गई थी.
आख़िरकार इस दबाव के चलते ‘तनिष्क’ को विज्ञापन वापस लेना पड़ा. कुछ लोगों का कहना था कि अगर जेआरडी टाटा जीवित होते तो वे इस तरह के दबाव में नहीं आते.
अंत में बात रतन टाटा और साइरस मिस्त्री से जुड़े विवाद की.
टाटा समूह के तत्कालीन अध्यक्ष साइरस मिस्त्री ने टाटा बोर्ड को लिखे पत्र में रतन टाटा पर कंपनी के मामलों में हस्तक्षेप करने और अपने फै़सले थोपने का आरोप लगाया था. इसके चलते रतन टाटा एक बार फिर विवादों में आ गए थे.
24 अक्टूबर 2016 को, साइरस मिस्त्री को एक घंटे से भी कम समय के नोटिस पर टाटा समूह के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था और इस फै़सले पर तब कई सवाल उठे.
टाटा संस ने मिस्त्री के सभी दावों को ख़ारिज कर दिया था. उन्होंने यह भी कहा था कि मिस्त्री को पूरी स्वायत्तता दी गई थी. हालाँकि, आरोप उस व्यक्ति ने लगाए थे, जिसे रतन टाटा ने ख़ुद टाटा समूह का प्रमुख नियुक्त किया था.
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