उत्तराखंड का शिक्षा विभाग ही जब मकसद से मटका हुआ हो तो ऐसे विभाग से बच्चों के भविष्य के निर्माण की उम्मीद करना एक तरह से बेईमानी ही होगा। बच्चे पढ़ने को तैयार है, लेकिन यहां किताबें ही नहीं मिल पा रही हैं। हालात यह हैं कि विभागीय स्तर पर कोई गंभीरता भी नहीं है और न कोई तैयारी।
लिहाजा बच्चों को किताबें ही नहीं मिल सकी हैं। यही नहीं अभी तीन महीने और इंतजार करने के लिए कहा जा रहा है। अभिभावक मी जान रहे हैं तीन महीने बाद भी किताबें मिल जाएं तब समझो। सबको दिख रहा है कि लोकसभा चुनाव चल रहे हैं, पूरा सिस्टम चुनाव में व्यस्त है, ऐसे में किताबें उपलब्ध कराने के लिए किसके पास समय होगा। मतलब साफ है कि, दूसरी बार भी सच्चाई स्वीकारने की जगह बच्चों से मजाक वह विभाग कर रहा है जिस पर इन मासूमों के भविष्य को संवारने का जिम्मा है।
इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या होगा? शिक्षा सत्र शुरू हो चुका है, लेकिन उत्तराखंड के राजकीय व सहायता प्राप्त अशासकीय विद्यालयों के छात्र-छात्राओं के लिए इस बार भी पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध नहीं हैं। शिक्षा विभाग का कहना है कि, तीन महीने बाद ही छात्र-छात्राओं को पुस्तकें उपलब्ध हो पाएंगी। जबकि जनवरी में दावा किया जा रहा था कि, राज्य में पहली से 12वीं कक्षा तक के ।। लाख से अधिक छात्र-छात्राओं को इस बार समय पर मुफ्त पाठ्य पुस्तकें आवंटित कर दी जाएंगी।
लेकिन, विभाग की कार्यप्रणाली देखिए कि फरवरी तक पहली से आठवीं कक्षा तक की पाठ्य-पुस्तकों के लिए ही टेंडर हो पाया। अब जबकि अधिकांश शिक्षक व अधिकारी लोकसभा चुनाव की ड्यूटी में व्यस्त हैं, सो छात्र-छात्राओं तक समय से पाठ्य-पुस्तकें पहुंच पाएंगी, ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता।
निधि अधिकारी